This is dedicated to the state of simultaneous attachment & detachment, practiced by Lord Shiva in Hindu Mythology. I hope you would like this.
तुमने पार्वती की तरह मुझे अपनी भक्ति से जलाया
मैंने शिव की तरह तीसरे नेत्र को खोला, प्रलय को बुलाया
हमारे बीच
भावनाओं के ज्वालामुखी फटते हैं
तो टुकड़े टुकड़े हो जाती है ज़मीन,
बनती है आग की लकीर
जो रास्ते की हर चीज़ को
मिटाती हुई
और कुछ नया लिखती हुई चली जाती है
विध्वंस और सृजन
एक साथ सधे हुए दिखते हैं
शिव के नीले कंठ में
बार बार
कच्चे रिश्तों के बीच बहता हुआ ये लावा
माँग का सिंदूर बन जाता है
© Siddharth Tripathi *SidTree
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