Particles of Emotion : भावनाओं वाले PM 2.5 कण

शहर में आज धुआँ बहुत है
करोड़ों उम्मीदों में
आग लगी है

चेहरे मुखौटों से ढके हैं
रोटी चुपड़ी है सामने,
राख लगी है

Core Thought : PM 2.5 कणों के स्तर को प्रदूषण की कसौटी माना जाता है..अक्सर हम समझते हैं कि वाहनों और फैक्ट्रियों के धुएं से ही इन कणों की मात्रा बढ़ती है। लेकिन विचारों और भावनाओं का भी धुआं होता है.. धुंध होती है.. सूक्ष्म कण होते हैं.. जो दिखाई नहीं देते.. कई बार भावनाओं वाले PM 2.5 कणों का स्तर बढ़ जाता है। हम जिस दौर में रह रहे हैं.. उसकी हवा, मेरी और आपकी भावनाओं से भी दूषित-प्रदूषित होती है।


कई बार चश्मा पहनना फ़ायदेमंद रहता है
कोई ये नहीं देख पाता कि आप कितनी रातों से सोए नहीं हैं
किस तरह पलकों की कँटीली तारों ने आँसुओं की भीड़ को रोका हुआ है
ठीक वैसे ही, जैसे पुलिस, विद्रोह कर रही भीड़ को बैरिकेड से रोक लेती है

ये सब सोचते सोचते उसे लगा कि मेज़-कुर्सी पर बैठे बैठे बहुत देर हो गई है
और उसने वॉशरूम जाकर आँखों में पानी के छींटे मारने शुरू कर दिए
इस तरह रोज़ ना जाने कितने आँसू बह जाते होंगे वॉश बेसिन में
ये आँसू बहकर पहुँचे होंगे नदी में..तालाब में
विखंडित हो गये होंगे तेज़ाबी भाप और नमक के कणों में
और असंख्य, अनाम लोगों की सांसों का हिस्सा बन गये होंगे

ये इंसान की भावनाओं वाले PM 2.5 कण हैं
इन सूक्ष्म कणों के प्रदूषण ने घुटन को बढ़ा दिया है
एक सामूहिक अट्टहास की ज़रूरत है
शायद हवा बदल जाएगी

© Siddharth Tripathi ✍️ SidTree

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