गंगा ने पाप धोना बंद कर दिया है !

Environmental Poetry : कार्तिक पूर्णिमा के अवसर पर गंगा (या किसी भी नदी) की पूजा और आरती का महत्व है… ये एक बार फिर पाप धोने और पुण्य कमाने का अवसर है.. लेकिन इस बार गंगा ने विद्रोह कर दिया है। ये पर्यावरण और उससे जुड़ी नैतिकता का क्षोभ रस है। अंग्रेज़ी और हिन्दी अगर बहनों की तरह मिलकर इस कविता की श्रेणी को परिभाषित करें तो इसे पर्यावरण Poetry भी कहा जा सकता है। पढ़िए और बताइये कैसी लगी ? आगे पर्यावरण से जुड़ी कुछ और चीज़ें लिखने का मन है।


Money & Sins Dissolve in Water ?


चोट खाई एक नदी
हौले हौले बहती है
वंदनीय, पूजनीय, गंगा
बहती है, कि उसे बहना ही है
भले ही कितने ज़ख़्म दिए जाएं
भले ही सारी कायनात की गंदगी
छाड़न का बोझ उसपर डाल दिया जाए
गंगा बहती है
जैसे कपड़े धुलते हैं, वैसे ही पाप भी धुलते आए हैं गंगा में
लेकिन आज उसने विद्रोह कर दिया है
गंगा ने कह दिया है
चाहे जितने सिक्के डाल दो
अब तुम्हारे पाप नहीं धुलेंगे


© Siddharth Tripathi  *SidTree |  www.KavioniPad.com, 2016.

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