Core Thought : Sometimes high fever dismantles you into pieces and then starts a conversation between you and your body.
तीव्र ज्वर
काया को
जिजीविषा से, पूर्वाग्रहों से, अहंकार और आत्मप्रदर्शन से
काटकर अलग कर देता है
बिलकुल वैसे ही जैसे
किसी ने नाल काटकर मां से बच्चे को अलग कर दिया हो
और इस दर्द से भरे एकांत में
इंसान का अपने ही शरीर से परिचय होता है,
बच्चा जिस तरह अपनी नन्हीं अंगुलियां,
अपनी त्वचा का रंग,
अपनी नाज़ुक देह को देखकर चकित होता है
वैसा ही विस्मय, ज्वर में तप रहे इंसान के चेहरे पर दिखता है
ये तीव्र ज्वर किसी रोग की सूचना है ?
या आत्मसंवाद की दिशा में ले जाने वाला रास्ता ?
© Siddharth Tripathi ✍️ SidTree