शांति की ज़रूरत बॉर्डर से ज़्यादा सड़कों पर है… सड़कों पर शोर और गुस्सा देखकर लगता है कि लोगों ने भारतीय संस्कृति को अपने स्टोर रूम में लगा ज़ीरो वॉट का बल्ब बना दिया है 💡

आगे वाले ड्राइवर ने गाड़ी के पीछे लिखा हुआ है “कम भौंको” 🔇 सवाल ये है कि क्या भाषा ध्वनि प्रदूषण से लड़ने का एकमात्र तरीका है? आगे ऐसा भी हो सकता है कि इससे भी मोटी और कर्री गालियां तमाम वाहनों पर लिखी जाने लगें। हो सकता है भविष्य में हॉर्न से भी किसी आवाज़ की जगह गालियां ही निकलें ! हालांकि तब भी बेवजह हॉर्न बजाने वालों को समझाने के लिए लोगों को हॉर्न ही बजाना होगा। क्योंकि हॉर्न भारतीय सड़कों पर होने वाला आधिकारिक संवाद बन गया है। प्यार से समझाने के लिए भी हॉर्न और गुस्सा जताने के लिए भी हॉर्न। कार के बंद शीशों के अंदर ना जाने कितनी गालियां दी जाती हैं.. लेकिन वो गालियां बाहर नहीं आतीं… बाहर सिर्फ हॉर्न की आवाज़ आती है। हॉर्न की आवाज़ और उसे बजाने के तरीके से आप समझ सकते हैं कि गाली दी जा रही है… या सही तरीके से गाड़ी चलाने की अर्ज़ी लगाई जा रही है।
कुछ समय पहले Infosys के Co-Founder, NR Narayana Murty ने अपने एक लेक्चर में कहा था
”Indians have highest ego per unit of achievement”
ये बात काफी हद तक सही है और भारतीय शहरों की सड़कों का ट्रैफिक इस बात की पुष्टि करता है
भारत में करीब 6 करोड़ 30 लाख लोगों की सुनने की क्षमता गंभीर रूप से प्रभावित हो चुकी है। लेकिन अफसोस इस बात का है कि हमारे देश में शोर मचाने वाले लोग किसी की नहीं सुनते
एक दिन रिसर्च करते हुए पढ़ा था कि
- भारत में सबसे ज्यादा शोर मचाने वाला शहर मुंबई है।
- फिर लखनऊ
- तीसरे नंबर पर हैदराबाद
- दिल्ली शोर मचाने के मामले में चौथे नंबर पर है
- और चेन्नई पांचवें पर
वैसे ये रिसर्च शायद सिर्फ बड़े शहरों में हुआ होगा, सच ये है ति भारत के किसी मध्यम दर्जे के शहर में भी शांति नहीं है। जहां थोड़ा बहुत विकास है वहां अशांति ही अशांति है
पूरी दुनिया में 10% लोग ऐसे हैं जिन्हें सुनने में परेशानी होती है
- हिसाब लगाओ तो करीब 70 करोड़ लोग हुए
- इनमें से आधे से ज्यादा भारत और चीन में हैं, मतलब ये हुआ कि अकेले भारत और चीन में करीब 35 करोड़ लोग ठीक से सुन नहीं पाते।
वैसे ये आंकड़ा कम लगेगा आपको क्योंकि अगर आप सड़क पर निकल जाएंगे तो महसूस होगा कि 132 करोड़ लोगों में से आपको छोड़कर बाकी सब बहरे हैं।
ये ज़रा से आंकड़े भी तस्वीर को काफी हद तक साफ कर देते हैं लेकिन ये आंकड़े ये नहीं बताते कि इस समस्या का इलाज क्या है। आंकड़ा कोई भी हो, समस्या का समाधान नहीं कर सकता। सिर्फ एक धुंधला सा रास्ता दिखा सकता है। वैसे साधारण शब्दों में शोर का इलाज शांति है, और अगर हर व्यक्ति इस शांति का दान दे तो भारत की सड़कों पर शांति के सफेद कबूतर उड़ने लगेंगे।
कृपया शांति का दान दें… शांति की ज़रूरत बॉर्डर से ज़्यादा सड़कों पर है
लोगों ने संस्कृति को ज़ीरो वॉट का बल्ब बनाकर अपने घर के स्टोर रूम (भंडरिया/टांड) में लगा दिया है। सही मायने में शांति का स्विच आपके हाथों में है और आप चाहें तो सड़क वाली संस्कृति बदल सकती है।