This poem is based on unseen mathematics of love. I want you to focus on glow of lovers. It’s like *phosphorescence of love ! ~ By the way in science phosphorescence means light emitted by a substance without being burnt
पहाड़ों को जब
सूरज सहलाता है
धूप फिसल पड़ती है
और बनने लगती हैं
सुनहरी लकीरें
हम तुम
धूप के गोल सिक्के
लम्हों से उठाते हैं,
रोशनी के इन टुकड़ों को
चलते फिरते सोखते हैं
तुम्हारी सुबह की तिकोनी धूप
मेरी दोपहर में रोशनी के चतुर्भुज
अापस में मिलकर चमकने लगते हैं
नये नये आकार बनने लगते हैं
हमारे साझे शरीर की परिधि को पार करती
इन लकीरों के दरमियान ही हमारा संसार है
ये सुनहरी लकीरों का गणित है
जिसे सिर्फ मैं और तुम समझते हैं
© Siddharth Tripathi *SidTree | www.KavioniPad.com, 2016.