Core Thought : This is a new poem on Power of Echoes. How sound travels and affects Judgement universally ?
मूल विचार : मन में गड़े निर्णय के कांटे को कैसे हिलाती है आवाज़ और उसकी प्रतिध्वनियां ?
जब किसी को बुलाने के लिए आवाज़ दी
तो वो आवाज़ लौट कर नहीं आयी
उस आवाज़ का सफ़र अब भी जारी है
शिद्दत से गले को छोड़कर भागती
ज़ुबान की नोक पर पल भर को ठहरकर छलांग लगाती आवाज़
दूर जाती है और खो जाती है
कहीं से टकराकर
छिन्न भिन्न नहीं होती
लौटकर नहीं आती
हम इंतज़ार करते हैं
और करते रहते हैं
अपनी इस यात्रा में आवाज़ में बंधे
न जाने कितने शब्द बिछड़ गए होंगे
कोई पहले छूट गया होगा
कोई और दूर गया होगा
दुनिया के किसी और कोने में
ज़िंदगी के किसी और मोड़ पर
आवाज़ का ये सिरा
निर्णय के तराज़ू के किसी एक पलड़े से टकरा गया होगा
और किसी ने कोई फैसला ले लिया होगा
चाहे मेरी हो या तुम्हारी
ये आवाज़, किसी न किसी के मन में गड़े
निर्णय के कांटे को हिला रही है
जो भी कहना
ज़रा संभलकर कहना
ये शब्दभेदी फैसले हैं
चीख निकाल देते हैं