आईने की आदत है,
कुछ न कुछ छीन लेता है
आंखें, हंसी, बोलने का सलीका..
आंसू, ग़ुस्सा, थोड़ा रंगीन, थोड़ा फीका..
हर चेहरा मौलिक होता है..
लेकिन सिर्फ तब तक,
जब तक आईने से सामना न हो जाए
हर बार आईना देखते हुए..
कुछ न कुछ चोरी हो जाता है..
सबकी खूबसूरती फिक्रमंद हो जाती है
© Siddharth Tripathi and www.KavioniPad.com, 2015